बुधवार, 2 मार्च 2016

!!जी ले जिन्दगी मिलकर, खुलकर....!!

बहुत गम है जीवन में तो क्या 
किसका जीवन बिना संघर्ष 
दो चार पल ही होते जीवन के 
जो भर देते हैं जीवन में हर्ष 

छोटे-छोटे लम्हों में अक्सर
खुशियाँ छुप-छुपकर आती है.
अगर जी लें  उन पलों में रहकर 
साँसों में जिदगी भर जाती है.

खुशियाँ कोई बारात नही है 
जो आयेगी भीड़ में भरकर 
ये तो है दुल्हन की तरह 
जो अकेले ही लांघे चौखट.

जैसे नन्ही बेटी की मुस्कान
जीवन बना सकती आसान 
माँ-बाप के दुआभरे हाथ 
कयामत तक न छोड़े साथ.

माँ की वो प्यारी थपथपाहट 
पिता की हक वाली फटकार.
ये दोनों ही हैं जीवन में फिर 
जीवन जीने का है ये आधार.

क्यों फिरे हम कंगाल बनके ऐसे 
जिसके पास सिर्फ और सिर्फ पैसे.
दिल है, धडकन है और है प्यार 
फिर मिलेंगे हमें अपने न कैसे.

जो छूट गए थे ही नही अपने 
जो अपने थे वे अब भी साथ खड़े.
जिनको हमारी परवाह ही नही 
उसके लिए क्यों पल-पल  मरे.

दुआ देनेवाले हाथों को पकड़कर 
बच्चों की खिलखिलाहटें भरकर 
सुख-सुख के  साथी को लेकर 
जी ले जिन्दगी मिलकर, खुलकर.

0 टिपण्णी -आपके विचार !: