गुरुवार, 21 जनवरी 2021

!!माँ का जूठा!!





अक्सर कहा जाता है कि जूठा खाने से प्रेम बढ़ता है लेकिन बड़े आश्चर्य की बात है कि जो हमसे सबसे ज़्यादा प्रेम करती है इस दुनिया में वो माँ कभी भी हमें अपना जूठा नहीं खिलाती।



हाँ शायद ही कोई माँ बच्चों को अपना जूठा खिलाती है बशर्त्ते कि कोई मजबूरी न हो। मुझे तो याद नहीं कि कभी माँ ने कहा हो अपना जूठा खाने। एक तो वो हमें भर पेट खिला के खाती हरदिन।



माँ शायद धरती कि अकेली ऐसी प्राणी होती है जो खुद भूख से छटपटाती भी रहे तब भी बच्चे को पहले न सिर्फ़ खिलाती है बल्कि बिना किसी उद्वेग के उसे प्रेम से खाते देख निहारती भी है। वरना भूख का वेग सहना आसान नहीं होता।



वैसे भी माँ बच्चे को जूठा क्यों खिलाएगी वो तो अपना पूरा हिस्सा ही खिला देती है। उसे पता होता है कि ये चीज़ बच्चे को पसंद है या कम है बस माँ की तो भूख ही मर जाती है। नहीं तो अचानक से वो समान उन्हें नापसंद हो जाता है।कभी कभी माँयें बहुत भोली हो जाती है।



माँ कभी साथ भी खाती तो ज़्यादातर तो यही होता कि वे पहले नहीं उठती। बचपन में तो याद है कि साथ खाने बैठाती तो पहले हमें भरपेट खिलाती, सारी अच्छी चीज़ें भी खिला देती। ऐसा कौन करता है? शायद कोई नहीं। इस दुनिया में तो कोई नहीं।



हाँ माँ एक परिस्थिति में जूठा खिलाती थी लेकिन वास्तव में वो भी जूठा होता नहीं था। जैसे घर में सबके हिस्से कुछ बँट रहा है। बच्चे बड़े सबको मिल रहा है। खाना ज़रूरी है। माँ को पता है कि ये चीज़ मेरे बच्चे को बहुत पसंद है। बस फिर माँ चखने का दिखावा कर ऐसे करती जैसे उन्हें वो बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा और झट से बच्चे को पकड़ा देती कि तू ही खा ले।



आज ऐसे ही अचानक याद आया कि मैंने तो कभी भी माँ का जूठा खाया नहीं या यूँ कहे कि माँ ने खिलाया नहीं।फिर भी वो प्रेम सबसे ऊपर। माँ रहे या माँ न रहे उनकी जगह कोई नहीं ले पाता क्योंकि वो जगह कभी ख़ाली ही नहीं होती। माँ माँ होती है कोई नौकरी का पद थोड़े न कि कोई भी उनकी जगह ले ले।



है कि नहीं।



इस जूठा खाने, साथ खाने ऐसी किसी भी औपचारिकता से बहुत ऊपर होता है माँ का प्रेम।





सबसे अच्छी बात ऊपरवाले की कि हर प्राणी के हिस्से एक माँ होती है, उसकी ममता होती है। सहेज कर रखे संभाल कर रखे बहुत अनमोल है ये रिश्ता।एक बार ही है मिलता।

गुरुवार, 31 दिसंबर 2020

!! ये बीता जो साल !!



ये बीता जो साल

ले गया कुछ चीज़ें ऐसे संग अपने

जैसे छोड़ी हो आँखें

ले ली उससे नींदे और सारे सपने

 

बहुत कुछ दिखाया

बहुत कुछ सिखाया

 

रिश्ते देखे

उनका खोखलापन देखा

ख़ालीपन देखी

कँपा दे वो अकेलापन देखा

 

देखा मैंने ज़िंदगी के चेहरे से नक़ाब उतरते

मातम को लड़ते आँसू और ग़म को झगड़ते

 

ये साल नहीं था कोई सच का शीशा

जो जैसा वो बिल्कुल वैसा ही दिखा

सब क्षणिक यहाँ कुछ भी न स्थायी

ये बात बड़ी निष्ठुरता से समझायी

 

 ज्ञान की किताबें जो सीखा न पायी

साल ने कूट कूट कर सब पढ़ा दिया

भ्रम मोह सबके मखमली चादर को

बिन लाग लपट झटके में हटा दिया

 

छीना तो इतना कि नए साल का

पहला आशीर्वाद तक छीन गया  

पाठ भी बहुत बड़ा पढ़ाया इसने

वक्त के सामने हम बौने बता गया

 

शुक्रिया तो न निकलेगा

पर ठीक है अब जाओ फिर न आना तुम

वैसे तुम्हें भुलाना नामुमकिन

हमारे नभ के सितारे हुए हैं तुझ में गुम 

शुक्रवार, 18 दिसंबर 2020

!! माँ की चाय !!



अधिकांशतः हर माँ की एक आदत सी होती है चाय। आदत से भी ज़्यादा ज़रूरत। अगर इसे मजबूरी भी कहे तो अतिशयोक्ति न होगी। हाँ उन्हें चाय चाहिए होती है पूरे दिन घर के काम में खुद को झोंकने के लिए। सबको खिलाने से पहले अग्र भूख लग जाय तो उसको मारने के लिए। कभी ग़ुस्से को दबाने के लिए कभी खुद को समझाने के लिए हालात को भुलाने के लिए कभी तो दो पल सुस्ताने के लिए।

 

मैंने कभी भी माँ को बेड टी लेते नहीं देखा। कभी भी किसी को उन्हें चाय पहुँचाते नहीं देखा। कभी तड़के सुबह या अलसायी शाम भी चाय पीते नहीं देखा। मतलब उन्हें चाय का लुफ़्त उठाते नहीं देखा। उनकी चाय तो चूल्हे से हल्का बाजू खिसक के ख़त्म हो जाती। कभी सब्ज़ी को दूसरी बार चलाने का समय आए उससे पहले ख़त्म हो जाती। कभी कपड़े सुखाते सुखाते।

 

अच्छी सहेली होती है चाय ख़ासकर माँ के लिए। उसकी घूँट में वो मन की घूँट उतार देती हैं। उसके साथ जीवन का ताप कड़वाहट सब पी लेती हैं। कभी कभी उनकी मीठी चाय में आँखों से एक दो नमकीन बूँदें भी चुपके से फिसल जाती है।

 

क्या कहे?

बस यही कि माँ के अगर चाय की लत है तो उनके साथ पिया कीजिए। अकेले चाय पीती माँ ख़ाली होती जाती है भीतर से। अपने साथ से उनके मन को भरिए क्योंकि जब माँ नहीं रहेगी तो आप इतने ख़ाली हो जाएँगे कि दुबारा कभी न भर पाएँगे।