मंगलवार, 23 जनवरी 2018

!! याद नहीं रह पाते हैं नाम कहते हुए पकड़ लिया मेरा हाथ !!


पता नहीं क्यूँ मुझको
बुढ़ापा इतना डराता है
गाहे-बेगाहे चलते-फिरते
अकेला घूमता मिल जाता है।

लोगों की तलाश में
कुछ कहने-सुनने की आस में
दर्द होता है लहजे में
और कोई होता नहीं है पास में।

जिनके सलामत हैं हाथ-पैर
अकेले ही निकल पड़ते सैर को
जो चल नहीं सकते वो तो
बस उम्मीद से देखते हर ग़ैर को।

नाम पूछा मुझसे आज और
माफ़ी भी माँग ली साथ-साथ
याद नहीं रह पाते हैं नाम
कहते हुए पकड़ लिया मेरा हाथ।

उनके हाथों की पकड़ मेरे
दिल तक इसतरह है पहुँची
स्पर्श अभी भी वही-का-वही
जबकि वो कब की जा चुकी।

0 टिपण्णी -आपके विचार !: