बुधवार, 7 मार्च 2018

!! उनके मिज़ाज के मुताबिक़  कब तक नज़र आती रहोगी !!


उनके मिज़ाज के मुताबिक़
कब तक नज़र आती रहोगी
बंदिशों को हया का नाम दे
कब तक यूँ शर्माती रहोगी।


माथे की शिकन पल्लू में छुपा
कब तक ना को हाँ बताती रहोगी
आँसू बहाने के लिए कब तक
तिनके का बहाना बनाती रहोगी ।


कितना हँसोगी बेवजह यूँ तुम
कब तक गम में मुस्कराती रहोगी
जी लो या मर ही लो एक़बार
कब तक इनमें आती-जाती रहोगी।


दफ़न कर अपने सारे ख़्वाब कब तक
उनके ख़्वाबों से दिल लगाती रहोगी
तुम भी इंसान हो तुम्हारे भी जज़्बात
कब तक इस सच को झूठलाती रहोगी।


उनके मिज़ाज के मुताबिक़
कब तक नज़र आती रहोगी

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