शनिवार, 2 जून 2018

!! गर्मी की शाम !!

रात की रानी, चमेली की ख़ुशबू
अमिया की भीनी-भीनी सी महक
बगिया के पानी की सौंधी सुगंध
भौरों की गुंजर,चिड़ियों की चहक

सूरज का जाना,चंदा का आना
पुरबयिया का तन मन सहलाना
खुले आसमा में बैठक लगाना
देर तलक बस यूँ ही बतियाना

कभी इसकी बातें,कभी उसकी बातें
बिना चुप्पी कटती थी वो सुंदर रातें
कभी शब्दों का खेल,कभी अंताक्षरी
वे लम्हे नहीं थे,थी समय की सौग़ातें

महफ़िल में होते थे हर एक  रिश्ते
भाई,बहन,माँ,पापा,चाची,दादी सब
कूलर,पंखा, ए॰सी॰ किसी के भी
होते कहाँ थे हम मोहताज तब

गर्मी की शाम भी होती थी सुहावनी
रिश्तों में अलग ही बयार थी ऐसी
न अब वो शाम रही न गर्मी रही
न ही रही महफ़िल वो पुरानी जैसी।

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