शुक्रवार, 18 दिसंबर 2020

!! माँ की चाय !!



अधिकांशतः हर माँ की एक आदत सी होती है चाय। आदत से भी ज़्यादा ज़रूरत। अगर इसे मजबूरी भी कहे तो अतिशयोक्ति न होगी। हाँ उन्हें चाय चाहिए होती है पूरे दिन घर के काम में खुद को झोंकने के लिए। सबको खिलाने से पहले अग्र भूख लग जाय तो उसको मारने के लिए। कभी ग़ुस्से को दबाने के लिए कभी खुद को समझाने के लिए हालात को भुलाने के लिए कभी तो दो पल सुस्ताने के लिए।

 

मैंने कभी भी माँ को बेड टी लेते नहीं देखा। कभी भी किसी को उन्हें चाय पहुँचाते नहीं देखा। कभी तड़के सुबह या अलसायी शाम भी चाय पीते नहीं देखा। मतलब उन्हें चाय का लुफ़्त उठाते नहीं देखा। उनकी चाय तो चूल्हे से हल्का बाजू खिसक के ख़त्म हो जाती। कभी सब्ज़ी को दूसरी बार चलाने का समय आए उससे पहले ख़त्म हो जाती। कभी कपड़े सुखाते सुखाते।

 

अच्छी सहेली होती है चाय ख़ासकर माँ के लिए। उसकी घूँट में वो मन की घूँट उतार देती हैं। उसके साथ जीवन का ताप कड़वाहट सब पी लेती हैं। कभी कभी उनकी मीठी चाय में आँखों से एक दो नमकीन बूँदें भी चुपके से फिसल जाती है।

 

क्या कहे?

बस यही कि माँ के अगर चाय की लत है तो उनके साथ पिया कीजिए। अकेले चाय पीती माँ ख़ाली होती जाती है भीतर से। अपने साथ से उनके मन को भरिए क्योंकि जब माँ नहीं रहेगी तो आप इतने ख़ाली हो जाएँगे कि दुबारा कभी न भर पाएँगे।

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