ये बीता जो साल
ले गया कुछ चीज़ें ऐसे संग अपने
जैसे छोड़ी हो आँखें
ले ली उससे नींदे और सारे सपने
बहुत कुछ दिखाया
बहुत कुछ सिखाया
रिश्ते देखे
उनका खोखलापन देखा
ख़ालीपन देखी
कँपा दे वो अकेलापन देखा
देखा मैंने ज़िंदगी के चेहरे से नक़ाब उतरते
मातम को लड़ते आँसू और ग़म को झगड़ते
ये साल नहीं था कोई सच का शीशा
जो जैसा वो बिल्कुल वैसा ही दिखा
सब क्षणिक यहाँ कुछ भी न स्थायी
ये बात बड़ी निष्ठुरता से समझायी
ज्ञान की किताबें जो सीखा न पायी
साल ने कूट कूट कर सब पढ़ा दिया
भ्रम मोह सबके मखमली चादर को
बिन लाग लपट झटके में हटा दिया
छीना तो इतना कि नए साल का
पहला आशीर्वाद तक छीन गया
पाठ भी बहुत बड़ा पढ़ाया इसने
वक्त के सामने हम बौने बता गया
शुक्रिया तो न निकलेगा
पर ठीक है अब जाओ फिर न आना तुम
वैसे तुम्हें भुलाना नामुमकिन
हमारे नभ के सितारे हुए हैं तुझ में गुम
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