रविवार, 14 मई 2017

!! हैप्पी मदर्स डे माँ! !!


हम छोटे-छोटे थे तब याद है मुझे कि जब माँ की शादी की सालगिरह होती थी हम बाहर बगीचे से गुलाब का फूल तोड़ के ले आते थे और माँ को भेंट करते थे। माँ उसी में निहाल हो जाती थी। माँ उसदिन नयी सारी ज़रूर पहनती थी। हाँ, सस्ते-महँगे का कोई झंझट नहीं था। पर नयी सारी पहनकर आराम नहीं करती, न ही कहीं बाहर डिनर पर जाती। उसदिन वो और भी ज़्यादा काम में लगी रहती। ज़्यादा पूजा-पाठ, रसोई में भी ज़्यादा समय लगाती, खीर,पूरी, सब्ज़ी सबकी अलग-अलग फ़रमाइश। मतलब माँ के शादी की सालगिरह हैं तो बस वे सबकी माँगे पूरी करती रहे। माँ भी बड़े मन से लगी रहती थी सुबह से शाम तक। बिना शिकायत अपनी थकावट छुपाये।

जब हम थोड़े बड़े हुए तो माँ को उनकी शादी की सालगिरह पर बिंदी या चूड़ी देने लगे। पैसे या तो हम जमा करते या फिर घर के किसी बड़े से माँग लेते। चूड़ी बिंदी से भी माँ उतना ही निहाल हो जाती। सारी किसी भी रंग की हो चूड़ी हमारी वाली लाल रंग वाली ही पहनती। मैचिंग से ज़्यादा प्यार मायने रखता शायद इसलिए कि वे माँ थी।

हमें माँ के साथ मनाने वाले दिनों में बस उनकी शादी की सालगिरह का ही पता था। पर एकदिन हमें माँ का जन्मदिन पता चला। हमें बड़ा आश्चर्य हुआ कि माँ का भी जन्मदिन होता है। तब हमें ये नहीं पता था कि जन्मदिन हर किसी का होता है। हमें तो लगता था कि केक काटनेवालों का ही जन्मदिन होता है। जन्मदिन नहीं हैपी बर्थ डे। इसलिए माँ, दादी, कामवाली इनलोगों का कोई जन्मदिन होता ही नहीं। ये हमारे बचपन की मासूमियत थी या माँ का अपने लिए कुछ भी समय न बचाने का असर। पता नहीं।

अब हम माँ को जन्मदिन पर भी फूल, बिंदी और चूड़ियाँ देने लगे। उम्र के साथ-साथ हमारे तोहफ़ों का आकर भी बढ़ता गया। कॉलेज में आते-आते हम साड़ी तक आ गए थे। वैसे माँ हमेशा मना करती पर जब हम ले आते तो उसे बड़े मन से सहेज कर रखती। उन्हें अब तक याद है सब तोहफ़े। फूल से लेकर साड़ी तक सब।

माँ को सब याद रहता है। दादी के किस्से, नानी की कहानियाँ, बुआ की बातें, मौसी की सौग़ातें सब। हमारी शरारतें, हमारी शिकायतें। कुछ भी नहीं भूलती। हाँ, बस अपना ख्याल रखना भूल जाती हैं। अपनी दूध और दवाई भूल जाती है। बाक़ी सब याद रहता है।

अभी कुछ साल से माँ के साथ मनानेवाले दिनों में एक और दिन जुड़ गया है। वो है मदर्स डे। मुझे याद है जब एक़बार बुआ ने दादी को हैपी मदर्स डे कहा तो दादी उलझन में पड़ गयी कि उसकी शादी तो सर्दियों में हुई थी तो मैरेज डे अभी कैसे आ गया। दादी,माँ ये सब आज भी मैरेज ऐनिवर्सरी को मैरेज डे ही कहती है। तो दादी परेशान की शादी सर्दी में तो उसकी सालगिरह गर्मी में कैसे आ गयी?

तब हम बच्चों ने उन्हें समझाया कि ये ये मैरेज डे नहीं मदर्स डे है। मतलब माँ का दिन। इसदिन माँ का ख़ास ख्याल रखते हैं। उसे तोहफ़ा देते हैं, बधाई देते हैं, उसके साथ समय बिताते हैं। आज दादी के इस भोलेपन पर माँ भी मुस्करा गयी। क्योंकि उन्हें मदर्स डे दादी से पहले पता चल गया था।

अब हम सब नौकरी करने लगे थे तो तोहफ़े ऑनलाइन ही भेजते। हमेशा की तरह माँ चार मीठी गाली सुनाती और तोहफ़े सहेज कर नाम आँखों से बड़ी वाली पेटी में रख देती।

टीवी और टीवी सीरियल के इस ज़माने में हमशे पहले माँ को पता चला जाता है कि मदर्स डे आनेवाला है। हाँ अपना जन्मदिन भूल भी जाती हैं क्योंकि उसे कोई सीरियल वाला नहीं मनाता। माँ को तोहफ़े का तो नहीं पर फ़ोन का इंतज़ार रहता है। हैप्पी मदर्स डे सुनने का इंतज़ार रहता है।

जब माँ मेरी उस ख़ास दिन का इंतज़ार करती है, उस दिन ख़ुद को ख़ास महसूस करती है फिर तो मना ही ले ये दिन भी। माँ फ़ेसबुक भी देख लेती हैं एक-दो इधर-उधर लाइक कर करा के। ऐसे ही घूमते-घूमते उन्हें मेरे या भैया के प्रोफ़ाइल में अपना फोटो दिख जाता है तो अच्छा लगता है कि शहर में रहकर भी बेटे को गाँव की माँ से दुनिया को मिलवाने में परहेज़ नहीं।

फिर क्या दिक्कत है? मैंने अपने अंदर के बुद्धिजीवी को लताड़ा जो बार-बार मुझे ये कह रहा था कि माँ के लिए बस एक दिन क्यों? क्या मतलब है इस एकदिन के उत्सव का। एकदिन के प्रेम प्रदर्शन से क्या? फ़लाना-ठिकाना पता नहीं क्या-क्या?

अरे माँ मेरी इससे ख़ुश है तो फिर क्या देशी क्या विदेशी। जब सबदिन ही माँ का है तो फिर ये एकदिन क्यों नहीं? वैसे भी जन्मदिन और शादी की सालगिरह के अलावा एक दिन तो और मिला है माँ के साथ मनाने का जो सिर्फ़ माँ के लिए है।

अब जब मेरी बेटी स्कूल से कार्ड बनाकर लाती है और हैपी मदर्स डे कहती है तब वो अहसास बताता है कि माँ और बच्चे का संबंध भाषा, देश, काल सबसे परे है।


हैप्पी मदर्स डे माँ!

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