मंगलवार, 13 फ़रवरी 2018

!! हे डमरूधारी,त्रिशूलधारी शिव औघड़दानी !!


चंद्र शोभित सिर पे
गंग धार बहाये जटा
निर्मल,निश्छ्ल मुखचंद्र
गले में भुजंग लिपटा।

धारण करें व्याघ्र छाल
नंदी पे करे सवारी
देते दुनिया को सब वर
पर स्वयं शंभु शमशान विहारी।

सबको चाहिए अमृत था
पर निकला जब विष भयंकर
सहज पान कर उस विष को
नीलकंठ कहलाए शंकर।

आशुतोष हैं भोले भंडारी
शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं
देवता माँगे या माँगे दानव
सबकी झोली भर आते हैं।

कामदेव की करतूत पे जब
तीसरे नेत्र से उसे भष्म किया
लेकिन रति रोयी तो उमेश ने
उसे वर भी तत्क्षण दे दिया।

गीत, संगीत, नृत्य मनोहारी
नाच रहे प्रभु प्रेम में नटराज
संग-संग नाचे भूत,प्रेत, गण
कैलाश पे हो सदा यही काज।

राम कथा में रत नित रहते
राम नाम ही जिह्वा पे इनके
परम वैरागी सुंदर शिव हैं
भोग करें हम नाम पे जिनके।

धन, दौलत, सुख, समृद्धि, पुत्र, संसार
जिसने जो भी माँगा आपने सबकी मानी
प्रभु कथा,प्रभु चरण में प्रीति हमें भी दे दें
हे डमरूधारी,त्रिशूलधारी शिव औघड़दानी।

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