बुधवार, 7 फ़रवरी 2018

!! ईबुक से हुई बहुत सहूलियत माना पर मुश्किल है उसमें गुलाब छुपाना !!


ईबुक से हुई बहुत सहूलियत माना 
पर मुश्किल है उसमें गुलाब छुपाना 
कुछ बूँदें लुढ़क जाए जो किरदार पे 
ईबुक को आता नहीं उसको सूखाना।

तकिए के नीचे कैसे सहेजे इसको 
मुश्किल है सीने पे रखके सो जाना 
न अक्षरों को छू महसूस कर सकते 
आसान नहीं है इससे वो प्रीत पुराना।

चेतन सा जीवन से जुड़ा होता था 
अच्छा लगता था उसके संग रहना
सहेज के रखना, जिल्द चढ़ाना और 
पन्नों को मोड़कर बुक मार्क लगाना।

सफ़ेद पन्ने काले अक्षर भर नहीं थे 
उनके घर तो था अपना आना जाना 
नित नयी आती सुविधाएँ छिन रही 
रसभरी मीठी यादों वाला  ज़माना।

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