शनिवार, 17 मार्च 2018

!! मैं हूँ देशी हुआ प्रवासी पर देश में ही डोले मन मेरा !!

मैं हूँ देशी
हुआ प्रवासी पर
देश में ही डोले मन मेरा

फीकी होली स्याह दिवाली
पंद्रह अगस्त को ऑफ़िस जाना
मन कहता यह देश न तेरा
मैं हूँ देशी
हुआ प्रवासी पर
देश में ही डोले मन मेरा 

बड़े-बड़े पर ख़ाली घर
गाड़ी बड़ी और छोटा मन
पूरब ने न जाने क्यों पश्चिम से नाता जोड़ा
मैं हूँ देशी
हुआ प्रवासी पर
देश में ही डोले मन मेरा

साँझ यहाँ जब ढलता सूरज
दिल कहे वहाँ
हुआ होगा सवेरा
मैं हूँ देशी
हुआ प्रवासी पर
देश में ही डोले मन मेरा


अभी वहाँ क्या बजा होगा
क्या कोई वहाँ जगा होगा
मन का रहता वही बसेरा
मैं हूँ देशी
हुआ प्रवासी पर
देश में ही डोले मन मेरा


बिजली तो नहीं जाती यहाँ
पर जीवन में मन में सबके
अधूरेपन का भरा अँधेरा
मैं हूँ देशी
हुआ प्रवासी पर
देश में ही डोले मन मेरा

वहाँ बहुत गर लूट मची है
यहाँ कौन शराफ़त की मूरत
अलग जगह पे अलग तरह का मिलता है लूटेरा
मैं हूँ देशी
हुआ प्रवासी पर
देश में ही डोले मन मेरा


बोली वहाँ की भोजन वहाँ का
बस डॉलर ही तो खींचे हमें
जैसे बीन बजाके सँपेरा
मैं हूँ देशी
हुआ प्रवासी पर
देश में ही डोले मन मेरा


ठाठ बाठ जीवन शैली बेहतर
आज बहुत सुविधाएँ यहाँ पर
तब क्या हो जब बुढ़ापे ने आ घेरा
मैं हूँ देशी
हुआ प्रवासी पर
देश में ही डोले मन मेरा

सूनी गालियाँ वीरान मुहल्ला
अनदेखा करे लोग खुल्लमखुल्ला
जाने कब तक यहाँ डेरा
मैं हूँ देशी
हुआ प्रवासी पर
देश में ही डोले मन मेरा

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