मंगलवार, 3 अप्रैल 2018

!! हमें भई नहीं बदलना !!

क्षण प्रतिक्षण दुनिया
बदल रही है
और हम
हमें भई हर क्षण नहीं बदलना

बोली बदली,भाषा बदली
प्रेम की परिभाषा बदली 
और हम 
हमें भई ऐसे नहीं बदलना 

रस्म रिवाज तीज त्योहार 
रहा नहीं इनसे सरोकार 
और हम 
हमें भई इनके संग ही चलना 

लूटपाट के, नोचनाच के 
ज़िंदगी सँवर रही है 
और हम 
हमें भई ऐसे नहीं सँवरना 

विधान है  बदलाव अगर तो 
बदले मन के कुटिल विचार 
बाहर सफ़ाई अंदर मैल 
ऐसा बदलना भी क्या बदलना 

जीवन ये तो एक चोला है
बदलाव कर्मों का झोला है
और हम
हम हैं अमल अविनाशी चेतना
हमें तो बस ये चोला बदलना
बदल के वापस घर को चलना

इसके सिवा और क्या बदलना
क्षण प्रतिक्षण क्या बदलना 

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