गुरुवार, 5 अप्रैल 2018

!! गाँव और शहर!!

चार पैसे अधिक कमाने को
घर को और सही चलाने को
निकले थे हम शहर की ओर
भारी मन से गाँव को छोड़।

पलट पलट कर देखें पीछे
वे छूटते लोग, छूटते मकान
बाँधा था सही से फिर भी
पीछे रह गया काफ़ी सामान।

हँसती, बलखाती पगडंडी से
सपाट सड़क पे आ गए हम
छूटा पीछे पीपल शीशम सब
शहर की धूप में नहा गए हम।

बहुत कमाया,बहुत बचाया
रहने को एक घर भी बनाया
पर हो गया बस अब जाना है
ऐसा दिन कभी न आया।

थोड़ा और थोड़ा और करते
जाने कैसे जवानी बीत गयी
जब होश आया तो ये पाया
जीवन की गगरी रीत गयी।

राह तकने वाले भी न रहे
वो नीम,पीपल सब कट गए
गाँव में अगली फ़सल आ गयी
हम शहर में ही फँस के रह गए

गाँव की हर पगडंडी
शहर की ओर जाती है
शहर की ये सपाट सड़कें
कभी गाँव नहीं पहुँचाती हैं।

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