आसमा में चंद तारे अभी भी थे
कालिमा भी थी अभी चारों ओर
चाँद थोड़ा-थोड़ा मंद हो रहा था
नूतन की प्रतीक्षा थी हर ओर।
हवा में भी ताजगी आ गयी थी
पेड़ रहे थे एक-दूजे को झकझोर
चिड़ियाँ चलने लगी झुंड बना
मचा रही थी वो संगीत-सा शोर।
सहसा प्राची में दिखी लालिमा
निकली जो कालिमा को तोड़
अब चाँद बिल्कुल मंद हो गया
तारे भी भाग चले आसमा छोड़
गुलाबी पीले रंग में पट गया
आसमा,जमीं,मन का हर कोर
फिर से सुंदरता भरने जीवन में
इक नया दिन लेकर आया भोर।