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शुक्रवार, 12 अप्रैल 2019

!! श्रीरामचंद्र !!



इक्ष्वाकुवंश में हुए अवतीर्ण

सच्चिदानंद स्वयं भगवान

राम नाम से जाना जग ने

अद्भूत अलौकिक धैर्यवान



मन वश में इंद्रियाँ वश में

नीतिज्ञ वक़्ता बुद्धिमान

शत्रुसंहारक परम मनोहर

सौंदर्य मानो शोभा की खान



सुंदर कंधे विशाल भुजा

शंख-सी ग्रीवा ठोढ़ी महान

चौड़ी छाती सुकंठ सुललाट

शत्रुनिषूदन तेजस्वी बलवान



आजानुभुज चाल मनहर

देह सुडौल कांतिवान

स्निग्धवर्ण पुष्ट वक्ष

सुंदर नेत्र चलायमान



धर्म के ज्ञाता सत्यवादी

ज्ञान से पूर्ण समाधिमान

प्रजापालक दीनबंधु यशस्वी

शुभलक्षण युक्त शोभायमान



पवित्र पालक सर्वभूत रक्षक

वैरीविध्वंशक प्रतापवान

अखिल वेद ज्ञाता धनुर्धर

तीक्ष्णबुद्धि प्रतिभावान



उदार हृदय सद्विचारी

मितभाषी स्मृतिवान

सदैव संभाव प्रियदर्शन

सर्वलोक हितैषी लक्ष्मीवान



साधुप्रिय सर्वगुण सम्पन्न

बल में साक्षात विष्णु समान

सिंधु सा गांभीर्य धरे और

धैर्य में हो जैसे हिमवान

सोमवार, 19 मार्च 2018

!! भिलनी के घर आए राम !!

मार्ग में फूल बिछाती सबरी
था उसका ये रोज़ का काम
कब से कर रही थी प्रतीक्षा
जाने कब आ जाए श्रीराम।

नयन के आगे चरण कमल थे
जिनका ध्यान नित धरती थी वो
मन में उमंग, आँखों में अश्रु
प्रेमानंद में डूबती उतरती थी वो।

भक्तों के सब भयहारी चरण
नेत्रों के उसके विषय थे आज
जिन चरणों की धूल लेने को
आए थे छोड़ भरत साम्राज्य।

चरण से नयन हटे ही नही
कैसे करे वो प्रभु अगवानी
जिनकी प्रतीक्षा में बीता जीवन
पूछ न पा रही जल पानी।

चरण से नयन उठाकर उसने
उठकर चाहा प्रभु को बिठाए
नयन ने देखे जो राजीव नयन
अब भला कैसे वो नयन हटाए।

त्रिभुवन का सौंदर्य समेटे
मनोज को मानो लजाते
समस्त रूप, गुण के खान राम
नयन इनपे जाते तो लौट कहाँ पाते।

कैसे बिठाए कैसे बुलाए
कैसे प्रभु को आश्रम पधराए
उसकी बात सुने न नयन
जो अब तक प्रतीक्षा में थे पथराए।

बूढ़ी आँखें बूढ़ी काया
मानों उसमें नवजीवन आया
मन को मनाके, नयन समझाके
प्रभु को भीतर आश्रम बिठाया।

लोट लोट के चरण पकड़ लूँ
या करूँ उनकी स्तुति औ गान
ना ना प्रभु हैं वन से आए थके
देती उन्हें  पहले जलपान।

आचमन करा के जल पिलाया
फिर लेकर आयी वो मीठे बेर
पेड़ के पके, प्रेम से कटे
जिमाने लगी प्रभु को झूठे बेर

किसका प्रेम अधिक है
ये किस विधि कोई जाने
भक्त-भगवान का अनुपम नाता
ये जड़ मति कैसे पहचाने।

हाथों में है बेर लिए और
आँखों से झर रहा आनंद
कैसे समेटे मन के भाव
सामने बैठे रघुकुल चंद।

क्या शोभा है उस कुटिया की
जिसमें विराजे साकेतबिहारी
प्रेम के बंधन आज बँधे हैं
सकल लोक भव बंधनहारी।

भाव के भूखे हैं प्रभु
छप्पन भोग से उन्हें क्या काम
कुटिया बन गयी तीरथ धाम
भिलनी के घर आए राम ।