क्यों पिछडकर कई क्षेत्रों में भी
सबसे धनवान अब भी धरा हमारी
क्या है खासियत इसकी जिसकी
कायल है सदियों से दुनिया सारी।
धन-धान्य भी थे तब यहाँ भरपूर
लूटनेवाले लूट गये हमारे कोहिनूर
पर एक संपदा कोई छीन पाया नही
हमारे आध्यात्म में छिपी है पूँजी वही।
अनेको रत्नों से नवाजा खुदा ने खुद
इस पावन भारतभूमि को हमारी
कभी राम दिया, कभी कृष्ण आये
तो कभी बुद्ध ने इसकी गोद संवारी।
राजघराने में पैदा हुए थे पर राजसी
वैभव-विलास भी इन्हें रोक न पाया
जब जीवन की सच्चाईयों को जाना
तो झूठे छलावों को पल में ठुकराया।
बुद्ध ने शुरू की अपनी जीवन यात्रा
बुढापा, बीमारी, मृत्यु की जिज्ञासा से
उन्हें हुई अभीष्ट की प्राप्ति जब बैठे थे
बोधि वृक्ष के तले वे ज्ञान की आशा से।
धर्म के नाम पे हो रहे अधर्म को रोका
धर्म के ठेकेदारों को भी उन्होंने टोका
अहिंसा का मार्ग दिखा चलना सिखाया
ऊँगलीमान को भी शांति का पाठ पढ़ाया।
ज्ञान पाया तो उसे वितरित किया ऐसे
कि दुनिया के कोने-कोने तक फैला है
धारण कर ले बुद्ध को थोडा जीवन में
धवल हो जाएगा ये मन जो मैला है।
बुद्ध पूर्णिमा के इस पावन अवसर पर
अहिंसा के प्रवर्तक को शत-शत नमन
उनका आशीष मिले जीवन में ताकि
क्रुद्ध मन में भी कर पाए बुद्ध का चयन।
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