शुक्रवार, 4 नवंबर 2016

!! ये बस त्योहार नही है, बिहार की संस्कृति का गर्व है !!





बस चार दिन का ही नहीं 
पूरे साल का है ये त्योहार।
क्योंकि पूरे साल ही होता
छठ के आने का इंतज़ार।।

देखा है लोगों को बचाते
छुट्टियाँ छठ मनाने के लिए।
दिवाली बिता देते दिल्ली में
छठ में घर आने के लिए।।

दिवाली के बाद होती
शुरू छठ की तैयारियाँ।
कहीं मिट्टी के चूल्हे बनते
कहीं गेहूँ सुखाती नारियाँ।।

कहीं बाँस के तो कहीं
पीतल के सूप ख़रीदे जाते।
सब काम ही करते हैं
छठ के गीत गाते-गाते।।

हरकिसी के मन में उमंग
हर ओर होता उल्लास।
वाक़ई ख़ुश होते लोग
मन में भरे असीम विश्वास।।

घर-परिवार, आस-पड़ोस
सब सबकी मदद करते।
किसी काम को करने में
ख़ुद को छोटा नही समझते।।

शहरों के लड़के जब सिर पर
पूजा की टोकड़ी उठा चले।
बुज़ुर्ग आँखें चमक उठती कि
अब भी संस्कार नही बदले।।

व्रत करनेवाले लोग
कितने दिव्य लगते हैं।
वे चार दिन वे जैसे
कुछ और ही होते हैं।।

छठ के शाम की छटा
अद्भूत, अकथनीय शब्दों से परे।
जैसे ख़ुशहाली ने स्वयं
धरती पर अपने पाँव हो धरे।।

सजे-धजे लोग, सजे हुए घाट
दीप जलाती लड़कियाँ ।
भाईचारा और प्यार ऐसा
जैसे मिट गयी हो दूरियाँ।।

डूबते दिवाकर की पूजा
फिर घर जाने की तैयारी।
सुबह तड़के आना घाट पे
होती उगते सूरज की बारी।।

ऊँच-नीच, अमीर-ग़रीब
किसी को कोई बंदिश नही।
जिसके मन में हो श्रद्धा
कर सकता है छठ वही।।

जिसकी जितनी सामर्थ्य
वैसी होती उसकी तैयारी।
दिवाकर सबके लिए समान
जब होती अर्घ्य की बारी।।

आस्था का उल्लास का
प्रेम और सौहाद्र का पर्व है।
ये बस त्योहार नही है
बिहार की संस्कृति का गर्व है।।




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