गुरुवार, 26 जनवरी 2017

!! खाते-पीते मौज मनाते ऐसे ही बचपन में गणतंत्र दिवस बीतता !!


मोटा सफेद कागज लेकर सब
उसमें केसरिया औ हरा रंग भरते।
एकदिन पहले शाम को ही सब
अपना-अपना झंडा बना लेते।।

ख़ुद से बनाते,खरीद कर न लाते
तो उससे प्रेम कुछ अधिक होता।
छब्बीस जनवरी बीतने के बाद भी
हमारी किताबों के बीच ही रहता।।

उसदिन सुबह-सुबह जल्दी होती
बिना खाए-पीए स्कूल जाने की।
पता नही कहाँ से मन में बैठी बात
खाने से पहले झंडा फहराने की।।

सफेद कपड़े के साथ-साथ एक
सफेद रूमाल जरूर से होता था।
जिसमें फूल लेकर जाते थे हम
लौटते उसमें लड्डू-बताशा रहता।

सरकारी स्कूल में बताशा मिलता
और प्राइवेट में बूंदी के लड्डू होते।
एक जगह से निपट लेने के बाद
बच्चे दूसरी जगह से भी ले आते।।

प्रभात फेरी, झंडोतोलन, सलामी
और फिर हमारा राष्ट्रगान शुरू होता।
राष्ट्रगान के बाद एक-दो बच्चों को
देशभक्ति गीत गाने को मिलता।।

दोपहर तक चलता पूरा कार्यक्रम
दर्शकों की भी भीड़ कम नहीं होती।
कलाकारों के लिए चौकी का मंच
दर्शकों के लिए कुछ कुर्सियाँ रहती।।

गीत, संगीत, कवितापाठ, नाटक
सब कुछ-न-कुछ कर रहे होते।
कुछ नहीं तो सतरंगी चुन्नी ले
वे स्टेज पे पीछे  जा खड़े रहते।।

मनभर मना गणतंत्र का उत्सव
थक-हारकर सब घर को आते।
माँ भी मूड में होती आज़ादी के
बिना पढ़े सारा दिन बिताते।।

पापा ज़रूर टीवी के पास बिठा
हर राज्य की झाँकियाँ समझाते।
जब सेना के करतब दिखते तब वे
सेनाध्यक्षों के नाम ज़रूर पूछते।।

गणतंत्र दिवस का ख़ास प्रसारण
जब पूरी तरह बंद  हो जाता था।
तब जाकर पापा के हाथ से वो
रिमोट हमारे पास आ पाता था।

फिर हम खंघालते हर एक चैनेल
कहीं तिरंगा, कहीं बॉर्डर दिखता।
सबकी सम्मति पूछकर आख़िर में
भगत सिंह वाला चैनेल चलता।।

माँ उसदिन खीर ज़रूर बनाती
साथ में खाना भी ख़ास होता।
खाते-पीते मौज मनाते ऐसे ही
बचपन में गणतंत्र दिवस बीतता।।

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