छोटी-सी हार, थोड़ी-सी निराशा
मोड़ गयी मन को ये किस ओर
सपने, सहेली,कपड़े,लत्ते, सामान
सबसे लिया पल में नाता तोड़।
अपनी बात, अपने फ़ैसले सही है
पर ज़िंदगी से ज़्यादा क़ीमती नहीं
कितनी भी सीढ़ियाँ चढ़ चुके पर
साँसों के संग थम जाए गिनती वही।
सच में बहुत बड़ी है ये दुनिया
सच में यहाँ सपने पूरे हो सकते हैं
देर होती है, ठोकर लगती हैं पर
पहुँच जाते हैं वे जो नहीं रूकते है।
मन दुखता है जब हमारे अपने ही
अक्सर हमें जान,समझ नहीं पाते हैं
हाँ,मन दुखता है जब हारे कदम से
वे सब कदम मिलाने नहीं आते हैं।
बहुत पीड़ा होती है नाकामी की
युद्ध-सा होने लगता है जज़्बातों में।
झड़-झड़ बरसता है नमकीन पानी
अकेली बिना अपनों वाली रातों में।
लेकिन हर रात की सुबह होती है
बस कहने की नहीं,देखी बात है ये
घुप्प अंधेरे का बाद रोशनी होगी
ज़रूर से मिलनेवाली सौग़ात है ये।
ठहरना, सुस्ताना ये सब ठीक है
लेकिन ऐसे सब छोड़ के चल देना
रूठना, लड़ना, झगड़ना सब ठीक है
पर ऐसे सारे नाते तोड़ के चल देना।
नहीं, ये ठीक नहीं है बिल्कुल नहीं
ये भागना है, हारना है, ये धोखा है
धोखा ख़ुद से, धोखा ज़िंदगी से
ये ज़िंदगी देनेवाले के संग धोखा है।।
पहले पेट में पाला फिर पालने में
चलना सिखाया, दौड़ना सिखाया
साथ में हँसा, बोला, खाया,पीया
क्या कुछ नहीं उसने हमें सिखाया।
फिर ज़िंदगी पर उसका इख़्तियार
सबसे,हमसे भी ज्यादा होना चाहिए
ज़िंदगी को ख़त्म कर देने से पहले
एक़बार तो उससे भी पूछना चाहिए।
प्रसव की अकल्पनीय पीड़ा तो सह ली
क्योंकि उसमें तुम्हारे मिलने का सुख था
पर कैसे सहे वो ये अकस्मात् की पीड़ा
जिसमें अंश के चले जाने का दुःख था।
हाँ मुश्किलें है और हमेशा रहेंगी ही वे
पर सिर्फ़ हमारे लिए नहीं सबके लिए हैं
सब उसी के साथ जिये, आगे भी बढ़े हैं
कहाँ हर किसी ने अपने प्राण दे दिए हैं।
जब भी मन भर जाए जीवन से तो
एक़बार पिता का ध्यान ज़रूर करें
भाई-बहन के उपहार देख लें बैठकर
माँ की कोई पुरानी पाती ज़रूर पढ़ें।
क्योंकि वक़्त हर ज़ख़्म भर देता है पर
इतना मरहम नही कि माँ के घाव भर दे
इतनी धूल भी नहीं है समय के पास
कि माँ की यादों पर उसकी परत मढ़ दे।
हार मान लेने से पहले ज़रूर सोचे
दो आँखें रह जाएगी सतत प्रतीक्षा में
पहले गीली फिर सूखी फिर पथरायी
रह जाएँगी दो आँखें सतत प्रतीक्षा में ।।
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