रविवार, 15 जनवरी 2017

!! कितना भी उन्नत हो या प्रगत प्रकृति के सामने सब पिछड़े हैं !!

बज रही हैं घंटिया लगातार
शाम से आपातकाल वाली।
सावधानी से गुज़ार लेनी है
आज की रात लम्बी-काली।।

भयंकर तूफ़ान के रास्ते में हैं हम
संभलकर रहने को कहा है हमें।
शीशे के पास बिल्कुल न जाए
स्थिति बिगड़ने पर टब में छुपे।।

ऐसी ही कितनी सलाह,हिदायतें
भेज रहे हैं नए-पुराने संगी-साथी।
whatsapp पर ही हो रही है ये
सारी कुशल-क्षेम से भरी पाती।।

मैंने चुपके से देखा खिड़की से
बारिश को सड़क साफ़ करते।
बिजली को चमक की टॉर्च ले
बारिश की भरपूर मदद करते।।

मानो जैसे आसमान से कोई
श्वेत सवारी में बैठ उतर रहा है।
जिसकी आगवानी में बादल
इतने ज़ोर-ज़ोर से गरज रहा है।।

काली रात चाँदनी हुई सहसा
चाँदनी हो जैसे ही वो इतरायी।
फिर से कालिमा ने ढक लिया
जैसे उसे ये अकड़ पसंद न आयी।।

बाढ़ व चक्रवात की चेतावनी में
लगातार डुगडुगी पीटी जा रही है।
पर बादल की बढ़ती गर्जना मानो
उन सबको बारबार चिढ़ा रही है।

ख़ूबसूरती हो या प्रबल प्रकोप
प्रकृति को पछाड़ नही सकता।
जो भी देते  हम सब प्रकृति को 
वही उधार तो है चूकता रहता।।

कितना भी उन्नत हो या प्रगत
प्रकृति के सामने सब पिछड़े हैं।
बारबार दिखा जाती वो आईना
फिर भी क्यों सब इतने अकड़े हैं?






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