सोमवार, 23 जनवरी 2017

!! मेरी खड़की से चला गया चाँद आज !!


खिड़की से यूँ ताक-झाँक
क्यूँ कर रहा है  चाँद आज।
पूछने पर बताया उसने कि
बस निपट चुके हैं सारे काज।।

बोला बैठे थोड़ी बात करें न
कई दिनों से हमारी हुई नहीं।
मैं सुनाऊँ आसमा की ख़बरें
तुम सुनाओ धरती की नयी।।

कुर्सी ले आ बैठी मैं भी इतने
जतन से जो उसने बुलाया था।
आँखें चुराने वाले दिन में उसने
आवाज़ लगा मुझे बुलाया था।

इधर-उधर की करके बात फिर
कर ही गया वो मन की बात।
क्यों नहीं कोई अब आता है
बाँटने उसके साथ चाँदनी रात?

छतें भी ख़ाली-ख़ाली हैं रहती
न खिला,न उतरा चेहरा दिखता।
अब प्रियतम का कोई मुझसे
खोज-ख़बर भी नही है लेता।।

न बच्चे मुझे मामा हैं कहते
न ही माएँ पुए खिलाती हैं।
मेरे घर की बुढ़िया से मिलने
नन्ही बच्ची भी नहीं आती है।।

न कोई मेरे तारों को गिनता
न मुझसे अपनी बातें कहता।
आजकल तुम्हारा इंसान क्यों
मुझसे इतना दूर-दूर् है रहता।।

कहते-कहते भर गया चाँद
थोड़ा उदास, ज़्यादा निराश।
उसके सवालों का कोई भी
जवाब कहाँ था मेरे भी पास।

फिर भी मैंने समझाया उसे कि
इंसानों के पास है समय कहाँ।
मिलना है उनसे तो तुम्हें ही अब
जाना होगा वहाँ,वे रहते हैं जहाँ।।

टीवी के आगे,ऑफ़िस में,क्लब में
या फ़ेसबुक, ट्विटर पर आ जाओ।
स्मार्ट्फ़ोन ख़रीद लो बढ़िया-सा
उसमें जियो का सीम डलवाओ।।

प्रिया, प्रियतम, माँ और बच्चे सब
मिल जाएँगे एक बार तो आओ।
तारें, चाँदनी,रात सबको लेकर
वट्सऐप पर एक ग्रूप बनवाओ।।

चाँद की सहमति देख मैं भी लगी
उसे यहाँ के सारे क़ायदे समझाने।
चहकता चाँद चल पड़ा गगन में
अपनी अच्छी-सी इक फ़ोटो लाने।।

मिलना है आज से तो कल को तो
उनके अड्डों पर ही पहुँचना होगा।
विशाल गगन को छोड़कर चमकती
चहारदीवारी में ही मुस्कुराना होगा।।


चाँदनी के संग कवर फ़ोटो लगवाया
तारों के साथवाली प्रोफ़ाइल पिक।
बस मेरी खिड़की थोड़ी सूनी हो गई
जहाँ से जाता था मुझे चाँद दिख।।


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