इतना कष्ट इतनी पीड़ा
इतना प्रेम इतनी चिंता
हर ओर आँसू बहाते लोग
फिक्र परवाह लुटाते लोग
दूर की मौत से इतने टूटे
घर में उन्हें क्यूँ न दिखते रूठे
सिसकियाँ भी सुनायी न देती
कातर पुकार की भी अनदेखी
इन निष्ठुर रिश्तों को भी तो
एक बार बढ़ समझाते लोग
आसपास के रिश्ते नातों में भी
काश फिक्रमंद हो जाते लोग
चीखती आँखें रोती बातें
रिश्तों के नाम पे सिर्फ़ सन्नाटे
भीड़ में अलग पड़े अकेले को
जीते जी भी तो अपनाते लोग
अच्छा है दुःख जताना
शोक मनाना आँसू बहाना
सदा ही कष्ट देता मन को
असमय किसी प्रिय का जाना
पर अभी बहुत हैं ज़िंदा ऐसे
मानो मरने की राह तके जैसे
उन्हें जीने की वजह दे आते
वहाँ भी संवेदना जताते लोग
कौन नहीं जिसने देखा न हो
बेवजह पीड़ित सीधा इंसान
आँखों के सामने होता अपमान
निकल गया कह के अपना न काम
कैसे ऐसे होते हैं लोग
छोटे छिछले हल्के लोग
तनाव का उपचार ज़रूरी है
पर संवेदनहीनता सबसे बड़ा रोग
गाँव से ले शहर तक फैला
हर आँचल है इससे मैला
ठीक कि भोगे सब अपना कर्म
चुप्पी से भर रहे हम भी थैला
पास की ज़्यादती पे मूक मौन
दूर से दर्द पे कूद कूद के शोर
कितने नक़ाबों से ढका आदमी
सच में इसका न है कोई तोड़
काश बोलने के मौक़ों पे चुप न रह जाते लोग
जाने के बाद बोल रहे जीते जी कह पाते लोग
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