शान से ईमान से
खड़ी रही
डटी रही
झुकी नहीं
हटी नहीं
डरना तो आता नहीं
चोर नहीं तो डरूँ क्यों
मुँह की बात मुँह पे
पीठ पीछे करूँ क्यों
अब तो अपने
शर्तों पे जीना सीख रही थी
अपनी कहानी
खुद के हाथों से लिख रही थी
घर की नींव
हम सबकी हिम्मत
न खुद टूटती
न औरों को बिखरने देती
कोई समस्या
कोई परेशानी
बेटा बेटी पति भी पीछे
स्वयं को आगे कर देती
आज भी सबसे आगे बढ़कर
चिर निद्रा में सबसे पहले सो गयी
कितना करती थक गयी वो भी
नीचे का निपटा ऊपरवाले की हो गयी
रखना ख़्याल प्रभु उसका
बहुत थककर गयी है नीचे से वो
इस दुनिया में फिर न भेजना
बहुत छलकर गयी है नीचे से वो
अपनी शरण में जगह देना
रोज़ करूँगी स्तुति मैं तेरा
तेरे हवाले है मोहन अब तो
सबसे बड़ा खजाना मेरा
ध्यान रखना
फिर न भेजना
हमारी उसे याद न आए
ऐसे उसे अपना लेना
हे गिरिधर माँ को मेरे अपना लेना।
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