मंगलवार, 29 सितंबर 2020

क्या कहूँ हताश हूँ निराश हूँ उदास हूँ

इतना क्रूर विभत्स डरावना 
दरिंदगी की सीमा से पार 
मार दी हमने फिर एक बिटिया 
उसका जाना हम सबपे उधार 

उसकी चीख उसके आँसू उसकी पीड़ा 
लौटकर आएगी हम तक ज़रूर 
रूह काँप जाए सोच भर के जिसे 
सही में मासूम बिटिया कितनी मजबूर 

दरिंदों  को जहां डर नहीं रह जाता 
वो समाज बड़ा होता भयानक डरावना 
न चुन्नी न साड़ी कुछ भी न सुरक्षित 
अब तो बचाना पड़ रहा है हमें पालना 

अपनी बच्चियों को लेकर साधारण माएँ 
मंगल चाँद कहाँ किस ग्रह पर चली जाँए ?
धरती पर समाज में रहकर भला वो कैसे 
अपनी बेटियों को तड़पकर मरने से बचाएँ ?

 क्या कहूँ हताश हूँ निराश हूँ उदास हूँ 
चुपचाप बैठी अपनी बिटिया के पास हूँ 

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