इसलिए यहाँ स्थायित्व की अभिलाषा रखना खुद को धोखे में रखना है। समझदारी तो ये है कि हम परिवर्तन को पूर्ण रूप से स्वीकारना समाहित करना सीख लें जैसे कि प्रकृति करती है।
अभी पतझड़ का मौसम है। पतझड़ नाम से हाई स्पष्ट है कि पत्ते झड़ जाएँगे। लेकिन पेड़ों से पत्तों के झड़ने की इस क्रिया परिवर्तन को भी प्रकृति कितनी सुंदरता से स्वीकारती है। रंगो से भर देती है धरती को वातावरण को और देखने वाली नज़रों को। अपनी हरियाली खो चुके लालिमा से अंत की ओर जाते ये पत्ते प्राकृतिक सुंदरती की अनुपम झाँकी बन जाते हैं।
ये है परिवर्तन को स्वीकारने का प्राकृतिक तरीक़ा जो हमारी आँखों को सुंदर मनहर दृश्य देता है, मन को सुकून देता है और ध्यान दें तो जीवन भर का दर्शन भी दे जाता है।
पेड़ों से लोगों के पैरों तक पहुँचे ये पतझड़ के पत्ते बहुत कुछ सीखाते हैं। सीखाते हैं परिवर्तन को सहज स्वीकार करना, सीखाते हैं समग्र में अपने हिस्से की सुंदरता जोड़ना। बहुत कुछ सीखा जाते हैं। जीवन का सार बता जाते हैं। पर सबसे बड़ी बात पतझड़ में जाते ये पत्ते बसंत में फिर आने का संदेश भी दे जाते हैं।
और पत्तों से विहीन हो चुका पतझड़ का पेड अद्भूत होता है। हर साल पतझड़ इसके पत्ते पत्ते ले जाए फिर भी हर वसंत ये नया पत्ते उगाए।
जो प्रकृति को पढ़ ले वो जीवन दर्शन समझ जाए।
है न।
प्रकृति के पास रहें
प्रकृति को पढ़े।
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