ये चिलचिलाती गर्मी जब
शाम भी लगती है दोपहर
नन्हीं घास से बड़े पेड़ तक
सब पे बरसे सूरज का कहर।
प्यासे पेड़ों को पानी देना
सावन-सा शीतल लगता है
घासों को जड़ से भीगोना
फागुन-सा मन को भरता है।
ढलती धूप, पानी का संग
तपिश को कम कर देती है
धीरे-धीरे गरम हवाएँ भी
खुद में ठंडक भर लेती है।
पेड़ों की छाया में खड़े हो
उनके ऊपर पानी बरसाना
हवा के साथ कुछ बूँदों का
फिर वापस हम पर आना।
बड़ा सुकून होता उन बूँदों में
अंतर्मन को तर कर जाती हैं
देने से ही दिल खिलता है
शायद यही हमें समझाती हैं।
इंसान हो या हो फिर दरख्त
अलग ही होता है
उसी की छाया में खड़े हो
उसे पानी देने का सुकून ।
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