कुछ बच्चे आधे-अधूरे कपड़ों
आधे-अधूरे भरे पेट के साथ
रिक्शा स्टैंड के पास
उस औरत को घेरे खड़े थे।
वो अड़ी थी कि रोज़ का आना है
क्या वो रोज ही पैसे देगी?
हमें भी भूख रोज लग आती है
बच्चे इस बात पे अड़े थे।
कभी हाथ फैलाते
कभी पेट पे फेरते हाथ
कभी पल्लू खींचे तो कभी
उसके पैरों को पकड़ रहे थे।
झकझोर दिया उसने
उन नन्हें खुरदरे हाथों को
जो बार-बार माँगकर
उसे परेशान कर रहे थे।
चल दी वो उसे जाना था
एक विशेष कार्यक्रम में आज
देना था बाल दिवस पे भाषण
करनी थी बच्चों के हक की बात।
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