सम्मान की भीख क्यूँ माँगे
अधिकार है तेरा,लो अपना
बुनती हो गर तुम फिर कोई
और क्यूँ चुने तेरे लिए सपना।
हर ग़लत पे सही होकर भी
तुझे ही क्यूँ पड़ता है झुकना
जीने के लिए जरूरी है बहुत
आत्म-सम्मान का बना रहना।
कोई आँख उठाए तुम पे तो
आँखें झुका के क्यूँ निकलना
आँख ही निकाल लो अगर तो
बंद हो जाए ये रोज़ का घूरना।
डर डर कर जीकर क्या मिला
वही उलाहना, ताड़ना, प्रताड़ना
तू नारी है, तू शक्ति है तो अपनी
शक्ति अब बाहर भी निकाल ना।
न सड़क सुरक्षित रही न अँगना
न ही सुरक्षित रह गया है पालना
बहुत सह चुकी अब बस भी करो
बेटियों का मार्ग है प्रशस्त करना।
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