गुरुवार, 14 सितंबर 2017

अंग्रेज़ी की धूप में शीतल छाया-सी है मेरी माँ हिंदी।


कई चीजें हैं जो इस परदेश में देश के लिए तड़पाती है मन को। खानपान, नाते-रिश्ते, तीज-त्योहार जाने कितनी चीजें और साथ में अपनी बोली। अपनी हिंदी। बड़ा पराया कर दिया है यहाँ उसके बच्चों ने उसे। सबके सामने माँ कहने में भी शर्म महसूस करते हैं। हाँ! नहीं बताते दूसरों को कि हिंदी उनकी मातृभाषा है। दो हिन्दुस्तानियों को हिंदी आती होगी पर वो बात अंग्रेज़ी में करेगा। अंग्रेज़ी हाई-फाई है न और  माँ तो देशी है, सीधी है, सरल है। फ़िल्में हिंदी में चाहिए, माँ से बात हिंदी में करनी है, आसूँ हिंदी में बहाने हैं लेकिन बाहर.....बाहर तो अंग्रेजी। हिंदी को अपनी माँ नहीं कहना।

बचपन में एक किस्सा सुना था अपने गाँव में कि एक सीधे-साधे, सरल व्यक्ति थे। उन्होंने अपने बेटे को अच्छे से पढ़ाया लिखाया। बेटा भी मेहनत कर अच्छी नौकरी पा गया। बेटा शहर में एक अच्छे घर, आधुनिक समाज में अपने रुतबे के साथ रह रह था। एकबार जब पिता बेटे से मिलने गए तो वहाँ बेटे के कुछ दोस्त, सहकर्मी भी थे। उनमें से किसी ने पूछ दिया कि उसके पिता के विषय में कि ये कौन है तो बेटे को इस साधारण वेश-भूषा, बोली वाले व्यक्ति को बाप कहते शर्म आयी और उसने अंग्रेज़ी में कह दिया "सरवेंट"। लेकिन पिता को  "सरवेंट" का मतलब पता था। उस पिता के मन की स्थिति क्या हुई, बाद में क्या किया उन्होंने ये तो कभी और चर्चा कर लेंगे।

लेकिन उस बेटे की कृतघ्नता, बेशरमी सोच मन करता है कि सामने मिले तो समझा ही दें उसे। पर ऐसा ही कुछ करते हैं हम भी अपनी मातृभाषा के साथ। परदेश क्या, देश के शहरों में भी वही हाल है। स्कूल, कॉलेज, ऑफ़िस में तो समझ आता है पर ये क्या शाम को टहलते मिल गए तो अंग्रेज़ी, मॉल में मिले तो अंग्रेज़ी, भारत की राजनीति पे बात तब अंग्रेज़ी, हिंदी फ़िल्मों के बारे में भी अंग्रेज़ी में ही बात होती है।

हद तो तब हो गयी जब एक सज्जन "हिंदी मीडीयम" फ़िल्म की तारीफ अंग्रेज़ी में कर गए।

जब चेहरा हिंदी का है तो अंग्रेज़ी का मुखौटा लगाने से क्या मिलता है पता नहीं। पर हम तो भाई हिंदी है चाहे सात समंदर के इसपार रहें या उसपार। हम तुमसे अंग्रेज़ी में तभी बात करेंगे जब तुम्हें हिंदी न आती हो। अब चाहे तुम हमें गँवार समझो या पिछड़ा।

अरे! हिंदी माँ है हमारी। माँ को पहली बार पुकारा था हिंदी में, पापा से पहली फ़रमाइश की थी हिंदी में, दादाजी को घर के किस्से सुनाए थे हिंदी में,  दादी से पैसे ले पहली बार हनुमान चालीसा पढ़े थे हिंदी में, राखी की पहली नेग माँगी थी हिंदी में,  स्कूल में सजा पायी हिंदी में, शाबासी भी मिली हिंदी में, झड़गे थे हिंदी में, चोट लगने में रोए थे हिंदी में, मन को पन्नों पे उकेरा पहली बार हिंदी में,  ........अब तक जीते आए हैं हिंदी में। ऐसे कैसे छोड़ दे उसका आँचल। इस अंग्रेज़ी की धूप में शीतल छाया-सी है मेरी माँ हिंदी।



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