जीवन के हर एक मोड़ पर
एक चौराहा हमें खड़ा मिला
जाएँ किधर,किधर है मंज़िल
ये सवाल हमें तो सदा मिला।
पर हर चौराहे पर उपरवाले ने
एक प्रदर्शक बिठा रखा था
हमारे गुण-दोषों को जिसको
उसने पहले से बता रखा था।
जिन्होंने ऊँगली थाम हमारी
सही दिशा में हमें बढ़ा दिया
जिनके हाथों ने तराश हमें
सोना, हीरा जैसा बना दिया।
कभी प्यार से तो कभी क्रोध से
उनका ध्येय था बस हमें बनाना
गीली-मिट्टी से मन को हमारे
एक सुंदर-सी मूर्ति में गढ़ जाना।
पथ दिखाकर, मंज़िल बतलाकर
छोड़ दिया सुख पाने को उन्मुक्त
न ऋण कोई, न आशा कोई हमसे
हर बंधन से कर दिया सहज मुक्त।
पर सफलता के अश्व की ये
सवारी हमारी
अकेले की नहीं सवारी है।
उस ऊँचाई में उन
सबकी ही भागीदारी है।
उन हाथों को जिन्होंने तराशा
उनको बार-बार करूँ वंदन
जिन चरणों में झुक ऊपर उठे
उन चरणों में श्रद्धा समर्पण।
चौराहे पे ठिठके क़दमों को
सही दिशा बतानेवाले को प्रणाम
हमारे जीवन में ज्ञान की लौ
जगानेवाले हर गुरु को प्रणाम।
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