स्कूल का होमवर्क
करवाया हो या न
पर कभी जीवन की
मार नहीं पड़ने दी।
पहली बार कलम
थमाया हो या न हो
पर जीवन को कभी
फीका न रहने दी।
स्कूल के प्रथम दिन से पहले भी
कितने सबक़ सिखाने होते हैं
कितने पाठ जो पुस्तकों में नही
वो पाठ भी उसे पढ़ाने होते हैं।
कक्षा-दर-कक्षा पूरा हो जाता
है एकदिन स्कूल और कॉलेज
पर उसकी शिक्षाएँ बंद न होती
चाहे कहीं भी क्यों न दे हमें भेज।
जीवन से पाठ पढ़ती ही रहती
रखती रहती हमारे लिए सहेज
हम सुने या न सुने पर वो रहे
सदा प्यार व फिकर से लबरेज़।
गर्भ में ढोती
बाहों में ढोती
और मन से तो
कभी उतारती ही नहीं।
हमें सुंदर बनाने में
इतनी डूब जाती
कि ख़ुद को कभी
सँवारती ही नहीं।
प्यार देती, दुलार देती
इतनी कुशल शिक्षक कि
पता ही नहीं चलता कब
वो संस्कार भी भर देती।
कभी प्रसाद में, कभी प्रार्थनाओं में
कभी लगाकर गले से
कभी फेरकर माथे पे हाथ तो
कभी बालों को सहलाकर हल्के से।
न गुरु दक्षिणा, न दीक्षांत समारोह
इनकी शिक्षा कभी ख़त्म न होती है
तभी तो हम सबकी ही प्रथम गुरु
हमारी माँ और सिर्फ़ माँ ही रहती है।
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