नयी फ़सल, नया साल और
नयी राशि में सूर्य का प्रवेश
अलग-अलग नाम से एक ही
उत्सव मना रहे हैं सारे प्रदेश।
प्रांत अलग तो नाम अलग पर
मूल में तो एक ही है सभ्यता
शुभ समय की आगवानी और
प्रकृति के प्रति हमारी कृतज्ञता।
लोहड़ी, पोंगल या हो संक्रान्ति
मिलजुल मनाए तभी है उत्सव
मिठाइयों की मिठास मन,वाणी
जीवन में घुल जाए तो महोत्सव।
सपनों को पतंग-सा आकाश मिले
रिश्तों में आ जाए गुड़-सी मिठास
तिल-सा पावन हो मन हम सबका
जीवन हो खिचड़ी-सा सरल स्वाद।
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