बच्चों-सी आदत थी उनकी
घर बिखेर के रख देती थी
जूठा कर देती थी सामान
कहीं टिक के नहीं रहती थी।
इतने सवाल करती थी सबसे
कि सारा घर परेशान हो जाता
मँडराते रहती खोजती सबको
कोई उनके पास नहीं आता।
चैन से बैठती नहीं एक पल
किसी भी कमरे में चली जाती
बंद करना पड़ता फिर कमरे में
समझाने से कुछ न समझती।
खाना कमरे में ही भेज देते
नहाने बाहर लाया जाता था
दिन में दो-चार बार झाँककर
कोई कमरे में देख आता था।
हाँ,नाती पोता नहीं,माँ थी वो
नब्बे पार कर चुकी बेकार माँ
हज़ारों नख़रे सह चुकी अब
नख़रे दिखाने को तैयार माँ।
पति बिन जी रही उदास माँ
पेंशन तक न देने वाली माँ
ऊँचा सुनने, बोलनेवाली माँ
बच्चों पर बोझ बन चुकी माँ।
आज आख़िर उन्होंने वो एक
कमरा भी कर दिया ख़ाली
छोड़ गयी उसका वो बिस्तर
आधी जूठी रोटी,पूरी थाली।
मुक्ति न मिले तो भी उनको
अगली बार बचपन तो मिलेगा
जिन आदतों से घर परेशान था
उन्हीं पर फिर हर कोई रीझेगा।
घर बिखेर के रख देती थी
जूठा कर देती थी सामान
कहीं टिक के नहीं रहती थी।
इतने सवाल करती थी सबसे
कि सारा घर परेशान हो जाता
मँडराते रहती खोजती सबको
कोई उनके पास नहीं आता।
चैन से बैठती नहीं एक पल
किसी भी कमरे में चली जाती
बंद करना पड़ता फिर कमरे में
समझाने से कुछ न समझती।
खाना कमरे में ही भेज देते
नहाने बाहर लाया जाता था
दिन में दो-चार बार झाँककर
कोई कमरे में देख आता था।
हाँ,नाती पोता नहीं,माँ थी वो
नब्बे पार कर चुकी बेकार माँ
हज़ारों नख़रे सह चुकी अब
नख़रे दिखाने को तैयार माँ।
पति बिन जी रही उदास माँ
पेंशन तक न देने वाली माँ
ऊँचा सुनने, बोलनेवाली माँ
बच्चों पर बोझ बन चुकी माँ।
आज आख़िर उन्होंने वो एक
कमरा भी कर दिया ख़ाली
छोड़ गयी उसका वो बिस्तर
आधी जूठी रोटी,पूरी थाली।
मुक्ति न मिले तो भी उनको
अगली बार बचपन तो मिलेगा
जिन आदतों से घर परेशान था
उन्हीं पर फिर हर कोई रीझेगा।
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