औरों के सपनों को
अपनी उड़ान देती है
ऊपर चढ़ने को उनको
अपना आसमान देती है।
हँसी सबसे बाँट लेती
पर अकेले में रोती है
रोती भी क्या चुपके से
बस पलकें भिगोती है।
अपने ख़्वाब कहाँ अब
अरसे हुए बिसरा दिए
सबके ख़्वाबों के तले
उसने अपने दबा दिए।
शोर-शराबा, भागदौड़
समय उड़ा ले जाता है
जब कोई नहीं हो तब
मुश्किल समय आता है।
ख़्वाबों को,यादों को भला
किस किस को वो संभाले
घर में अकेली औरत कैसे
ख़ुद से ख़ुद को निकाले।
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