दिल के कोने का कोई तार
भावनाओं का सुंदर चालक हो
उमर की सीमा से उठकर
रहता मन में सदा एक बालक हो।
पीड़ा से दुःख पहुँचे मन को
चाहे वो अपनी हो या परायी
छिछला-छिछला न हो कुछ भी
शब्दों में हो मन की गहराई।
सुख-दुःख के स्पंदन से
फूट पड़े शब्द सहज
हर्ष विषाद का उद्घाटन है
नहीं शब्दों की तुकबंदी महज़।
साफ़ सुथरे निर्मल जल का सरोवर
होता है ऐसा ही एक कवि का हृदय
सुख-दुःख की कंकड़ी पड़ती उसपे
तरंगों की तरह हो कविता का उदय।
जीवन के द्वंद्व भले ही
कविता के कारण बनते
पर कवि हृदय भी तो
हर किसी कहाँ ही मिलते।
ये मन, बुद्धि, शब्दों का चयन
वागेश्वरी की कृपा अकारण
वरना किसके पास नहीं है यहाँ
कवि बनने के जज़्बाती कारण।
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