गुरुवार, 22 मार्च 2018

!! कहाँ नहीं हैं हम !!

रिक्शा चलाते हम दिख जाते
ईंट उठाते हम दिख जाते
सीमा पे हम दिखते नहीं है
ज्ञान-विज्ञान में दिखते नहीं हैं
राजनीति, फ़िल्म,साहित्य या शिक्षा
कहाँ नहीं लहराया परचम
देश के आला अधिकारी हैं हम
तीक्ष्णतम बुद्धि के धारी है हम

कहते हो बिहार के हैं हम पर
ये बतलाओ कहाँ नहीं हैं हम।

आपकी बोली आपकी पहचान
हमारी बोली हो गयी उपहास
इसी बोली से जब बोले दिनकर
दंग हुए थे जिसे नेहरु सुनकर।

जलवायु के अनुसार से हर
प्रदेश का अपना खानपान
अपनी-अपनी रीति रिवाजें
जो है उनका मान-सम्मान।

बोली का उपहास उड़ाओ न
देश को राष्ट्रकवि दिए हैं हम
इतिहास को छोड़ आज भी तो
सबसे अधिक आईपीएस हम
हर क़दम पे आगे चार क़दम
किस तरह हम लगते तुम्हें कम

कहते हो बिहार के हैं हम पर
ये बतलाओ कहाँ नहीं हैं हम।

दिनकर,रेणु, नेपाली, वर्मा
नागार्जुन,शास्त्री को दिया जन्म
जन सकती है ऐसी शक्ति
उस धरा धाम के बासी है हम।

लोकतंत्र के चारों स्तंभ
सबमें ही देते रहे योगदान
हमारा भी रंग है उसपर
माँ का है जो धानी परिधान।

नालंदा अगर कल है तो
आईआईटी में वर्तमान हमारा
सत्तावान और चंपारण में
कैसे भूले कोई योगदान हमारा।

बिस्मिल्ला खान की मधुर मिठास
शारदा सिन्हा की कोकिल वाणी हम
चाणक्य की चतुरता है हम में
वैदही की सहज पावनता हम।

कहते हो बिहार के हैं हम पर
ये बतलाओ कहाँ नहीं हैं हम।

विद्यापति के गीत हैं हम
गोनु झा की कहानी हम
गुरु गोविंद सिंह की वाणी
भगवान बुद्ध की निशानी हम।

ज़मीन से जुड़ी सुंदरता हम
भोला मन और कोमलता हम
बिना अहम की कुशलता हम
धरती से आती मोहकता हम।

कहते हो बिहार के हैं हम पर
ये बतलाओ कहाँ नहीं हैं हम।

दो चार नेताओं का चेहरा
यही चेहरा नहीं बिहार का
समाचार बस परिचय नहीं
हमारी संस्कृति संस्कार का।

हाँ हैं ज़मीन से जुड़े हम
पर हर दृष्टि से पूरे हम
अच्छे के लिए अच्छा
बुरे लिए बहुत बुरे हम।

कहते हो बिहार के हैं हम पर
ये बतलाओ कहाँ नहीं हैं हम।




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