आज फिर बही बयार दरिंदगी की
फिर घुटी पुकार मासूम ज़िंदगी की
बात नहीं धर्म,मज़हब या बंदगी की
बात है सिर्फ़ औ सिर्फ़ शर्मिंदगी की।
कैसे लोग है जो गुनहगारों में भी
इसका,उसका,मेरा तेरा कर रहे हैं
क्या ये लोग अपने-अपने घरों में
नन्ही बेटियों के साथ नहीं रह रहे हैं।
आसाम,बिहार या कश्मीर की हो
पुराण या क़ुरान वाले घर की हो
जैसे हमारे घर में बिटिया वैसे ही
किसी बाबुल की बिटिया थी वो।
गिद्धों के हाथ आयी गौरैया थी वो
नन्ही-सी चहकती चिड़िया थी वो
किसी माँ के मन की पुरवैया थी वो
हमारी गुड़िया-सी ही गुड़िया थी वो।
अपनी गुड़िया के भविष्य लिए
इस गुड़िया को इंसाफ़ दिलाना है
बाक़ी बाद में बचाते रहेंगे पहले
हमें अपनी बेटियों को बचाना है।
फिर घुटी पुकार मासूम ज़िंदगी की
बात नहीं धर्म,मज़हब या बंदगी की
बात है सिर्फ़ औ सिर्फ़ शर्मिंदगी की।
कैसे लोग है जो गुनहगारों में भी
इसका,उसका,मेरा तेरा कर रहे हैं
क्या ये लोग अपने-अपने घरों में
नन्ही बेटियों के साथ नहीं रह रहे हैं।
आसाम,बिहार या कश्मीर की हो
पुराण या क़ुरान वाले घर की हो
जैसे हमारे घर में बिटिया वैसे ही
किसी बाबुल की बिटिया थी वो।
गिद्धों के हाथ आयी गौरैया थी वो
नन्ही-सी चहकती चिड़िया थी वो
किसी माँ के मन की पुरवैया थी वो
हमारी गुड़िया-सी ही गुड़िया थी वो।
अपनी गुड़िया के भविष्य लिए
इस गुड़िया को इंसाफ़ दिलाना है
बाक़ी बाद में बचाते रहेंगे पहले
हमें अपनी बेटियों को बचाना है।
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