सोमवार, 16 अप्रैल 2018

मेरा धर्म क्यूँ शर्मिंदा हो ?


मुझे नहीं शर्मिंदगी 
अपने धर्म पे 
क्योंकि मेरा धर्म 
हैवानियत नहीं सिखाता

न सीखी जिसने गीता 
न पढ़ी रामायण 
नाम रखने भर से 
कोई राम नहीं हो जाता 

दो-चार बाबा 
कुछेक हैवान
ये चेहरे नहीं
हमारी सनातन संस्कृति के 

हम राम को भजेंगे 
हम शास्त्र को पढ़ेंगे 
हाँ हम ख़िलाफ़ हैं 
इन समाज की विकृति के

दूसरों के दुःख में
दुखी होना 
सारे जगत को मानना परिवार 
ये हमारा धर्म सिखाता है 

कोई सीख न पाए 
जो धर्म न निभाए
ग़लती इंसान की 
धर्म नहीं ग़लत हो जाता है 

धर्म कपड़े का रंग
सिर की शिखा 
और शरीर का 
जनेऊ भर नहीं होता 

धर्म मन की शांति 
वाणी का नियंत्रण 
विचारों का शुद्धीकरण 
प्राणीमात्र में प्रभु बताता 

तेरा मेरा करके अब 
गुनहगारों को मत छाँटो 
मासूम बच्ची की पीड़ा 
उसे इंसाफ़ दिला बाँटों 

अपराध जघन्य तो 
सज़ा भी बर्बर मिले 
चाहे फाँसी चढ़े या 
फिर ज़िंदा ही जले 

पर हाँ,इन हैवानों की वजह से 
मैं अपने भगवान पे शर्मिंदा नहीं 
जिसे राम कृष्ण समझ न आए 
कैसे हो गया वो धार्मिक कहीं

न ये करतूत करने वाले धर्मी 
न ही पट्टा लेकर घूमनेवाले 
जो बसे हृदय में परमात्मा बन 
कौन है उन्हें निकालनेवाले।

धर्म का मतलब है सुख-दुःख से
कहीं ऊपर मीरा वाला  आनंद 
धर्म का मतलब आसाराम नहीं 
धर्म का मलतब है विवेकानंद।

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