हाँ रहता है मंदिर मस्जिद में
पर तेरे भीतर भी रहता वो
सुन तो ज़रा कभी ग़ौर से
बैठ भीतर क्या कहता वो।
ख़ुद को हो या उसको ढूँढना
बाहर नहीं ढूँढ बस अंदर अपने
अंदर है बसा साम्राज्य सुख का
समाए जाने कितने सुंदर सपने।
तू भी तो अपने ही भीतर और
वो कहाँ नहीं कण-कण में जो
आदि काल से अनंत काल तक
शाश्वत सनातन साथी तेरा वो।
तू भी भीतर वो भी भीतर
फिर बाहर क्या ढूँढे तू
पर तेरे भीतर भी रहता वो
सुन तो ज़रा कभी ग़ौर से
बैठ भीतर क्या कहता वो।
ख़ुद को हो या उसको ढूँढना
बाहर नहीं ढूँढ बस अंदर अपने
अंदर है बसा साम्राज्य सुख का
समाए जाने कितने सुंदर सपने।
तू भी तो अपने ही भीतर और
वो कहाँ नहीं कण-कण में जो
आदि काल से अनंत काल तक
शाश्वत सनातन साथी तेरा वो।
तू भी भीतर वो भी भीतर
फिर बाहर क्या ढूँढे तू
मन माँहीं उसे ढूँढ,क्यूँ फिरे
यूँ जीवन से रूठे-रूठे तू।
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