ताउम्र खेलता रहा था जो रंगों से
अंतिम लिबास कितनी बेरंग उसकी
बिन पूछे जला आए उसे सब मिल
साँसे भी लेते थे इजाज़त से जिसकी।
महल मकान सब खड़े रह गए उसके
वो ख़ुद ही मिट्टी बन ख़ाक हो गया
अपनी टाँगी तस्वीरों के बग़ल में टंगा
बिन पूछे जला आए उसे सब मिल
साँसे भी लेते थे इजाज़त से जिसकी।
महल मकान सब खड़े रह गए उसके
वो ख़ुद ही मिट्टी बन ख़ाक हो गया
अपनी टाँगी तस्वीरों के बग़ल में टंगा
आग समझता था ख़ुद को राख हो गया।
उसके जाने के बाद भी चल रही दुनिया
बह रहे हवा पानी जो भी काम जिसका
उसके जाने के बाद भी चल रही दुनिया
बह रहे हवा पानी जो भी काम जिसका
इस आने जाने की मोहताज नहीं दुनिया
गवाह रहा है इतिहास सदियों से इसका।
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