सुधा जैसी ही घर में घुसी माँ ने थोड़ा ग़ुस्से में पूछा,”तेरे साथ जो वो लड़की थी अभी वो पूनम थी न?”
“हाँ” सुधा ने भी तंज में ही बोला।
ये अब लगभग हर शुक्रवार होता है। शुक्रवार को सुधा का कोई ट्यूशन नहीं होता तो वो स्कूल से सीधा घर आती है और साथ में पूनम होती है।
पूनम उसकी अच्छी सहेली थी। अच्छी नहीं सबसे अच्छी। पढ़ने में होशियार थी, समझदार थी। जब भी सुधा लड़ने-झगड़ने में पड़ती वो इसे शांत करवाती। कुछ-कुछ मम्मियों की तरह समझदार थी।
“कितनी बार मना किया है कि उसके साथ रहना छोड़ दे।सुनती क्यों नहीं हो?”
माँ की आवाज़ और ग़ुस्सा दोनों तेज़ था इसबार।
“आपको उससे दिक्कत क्या है? हर चीज़ में मेरे से बेहतर ही तो है।”
“हाँ बस माँ-बाप का पता नहीं”
“माँ विनोद अंकल और रचना आंटी ने उसे गोद लिया है। क़ानूनन वे पूनम के मा-बाप हैं।”
“गोद लेने से संस्कार नहीं आ जाते।”
“ऐसा है माँ तो फिर उसमें इतने अच्छे संस्कार कैसे हैं?” इसबार सुधा ने कटाक्ष किया था।
“अच्छे संस्कार वाले बच्चे को यूँ नहीं पैदा कर छोड़ देते। मुझे ज़्यादा बहस नहीं चाहिए।तू उसके साथ उठना-बैठना बंद कर नहीं तो तेरे पापा को बताना पड़ेगा।”
“माँ कैसी बातें कर रही हो।एक माँ होकर एक बच्ची के लिए।”
“माँ हूँ मैं चरित्रहीन माँ नहीं।”
“चरित्रहीन”
सुधा सन्न रह गयी ये शब्द सुनकर। माँ बनना सृष्टि की सुंदरतम चीज़ों में एक है। पूनम इस दुनिया में है तो उसकी माँ ने नौ महीने उसे सींचा तो होगा न। प्रसव पीड़ा भी सही होगी। फिर मेरी माँ उन्हें ऐसी गंदी बात क्यों कह रही है। पूनम को देखकर तो लगता है वो भी बहुत प्यारी होंगी या रही होंगी। क्या पता क्या परिस्थिति क्या हालात रहे होंगे। पर पूनम को पेट में तो नहीं मारा न। ख़ुद को संभालते-संभालते फफ़क के रो पड़ी सुधा। पर वो और मज़बूत हो गयी थी कि कुछ भी हो वो पूनम से अपनी दोस्ती नहीं तोड़ेगी।
“हाँ” सुधा ने भी तंज में ही बोला।
ये अब लगभग हर शुक्रवार होता है। शुक्रवार को सुधा का कोई ट्यूशन नहीं होता तो वो स्कूल से सीधा घर आती है और साथ में पूनम होती है।
पूनम उसकी अच्छी सहेली थी। अच्छी नहीं सबसे अच्छी। पढ़ने में होशियार थी, समझदार थी। जब भी सुधा लड़ने-झगड़ने में पड़ती वो इसे शांत करवाती। कुछ-कुछ मम्मियों की तरह समझदार थी।
“कितनी बार मना किया है कि उसके साथ रहना छोड़ दे।सुनती क्यों नहीं हो?”
माँ की आवाज़ और ग़ुस्सा दोनों तेज़ था इसबार।
“आपको उससे दिक्कत क्या है? हर चीज़ में मेरे से बेहतर ही तो है।”
“हाँ बस माँ-बाप का पता नहीं”
“माँ विनोद अंकल और रचना आंटी ने उसे गोद लिया है। क़ानूनन वे पूनम के मा-बाप हैं।”
“गोद लेने से संस्कार नहीं आ जाते।”
“ऐसा है माँ तो फिर उसमें इतने अच्छे संस्कार कैसे हैं?” इसबार सुधा ने कटाक्ष किया था।
“अच्छे संस्कार वाले बच्चे को यूँ नहीं पैदा कर छोड़ देते। मुझे ज़्यादा बहस नहीं चाहिए।तू उसके साथ उठना-बैठना बंद कर नहीं तो तेरे पापा को बताना पड़ेगा।”
“माँ कैसी बातें कर रही हो।एक माँ होकर एक बच्ची के लिए।”
“माँ हूँ मैं चरित्रहीन माँ नहीं।”
“चरित्रहीन”
सुधा सन्न रह गयी ये शब्द सुनकर। माँ बनना सृष्टि की सुंदरतम चीज़ों में एक है। पूनम इस दुनिया में है तो उसकी माँ ने नौ महीने उसे सींचा तो होगा न। प्रसव पीड़ा भी सही होगी। फिर मेरी माँ उन्हें ऐसी गंदी बात क्यों कह रही है। पूनम को देखकर तो लगता है वो भी बहुत प्यारी होंगी या रही होंगी। क्या पता क्या परिस्थिति क्या हालात रहे होंगे। पर पूनम को पेट में तो नहीं मारा न। ख़ुद को संभालते-संभालते फफ़क के रो पड़ी सुधा। पर वो और मज़बूत हो गयी थी कि कुछ भी हो वो पूनम से अपनी दोस्ती नहीं तोड़ेगी।
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