कोरा कागज,गीली मिट्टी
बचपन कुछ ऐसा ही होता
कोई उसे देता है आकार
तो कोई उसमें रंग भर देता
कितने ही रंग सजाए जीवन
किसी-न-किसी से है सब पाया
ये पाने का जो ऋण है हम पर
न चुका सकते न ही चुकाया
जीवन में हमारे जितने भी रंग
उस हर एक कूँची को है नमन
जिस आकार में जीवन है आज
बनानेवाले हर कुम्हार को नमन
बचपन कुछ ऐसा ही होता
कोई उसे देता है आकार
तो कोई उसमें रंग भर देता
कितने ही रंग सजाए जीवन
किसी-न-किसी से है सब पाया
ये पाने का जो ऋण है हम पर
न चुका सकते न ही चुकाया
जीवन में हमारे जितने भी रंग
उस हर एक कूँची को है नमन
जिस आकार में जीवन है आज
बनानेवाले हर कुम्हार को नमन
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