हर जन में हर कण में
सुप्त जागृत हर मन में
स्थूल सूक्ष्म जड़ चेतन में
रूके थके चलते जीवन में
हर जगह समाहित पूरनकाम
जरा समझाओ कहाँ नहीं राम
सबरी केवट निषाद अहिल्या
या हो वानर भालू रीछ राक्षस
सबको अपनाया गले लगाया
संभावी के मन न भेद आया
हर जीव पाए इनमें आराम
सबके हितैषी औ स्वामी राम
जिह्वा पर आए तो प्रेम बढ़ाए
पत्थर पे लिखे तो वो तर जाए
कलि में प्रभु इसी रूप में आए
सारे शास्त्र हमें यही समझाए
सर्व समर्थ जीव का परम विश्राम
राम-सा कृपालु है राम का नाम
जो जपे इसे वो जीवन है धन्य
इसका कहाँ कोई विकल्प अन्य
अद्भूत अलौकिक आनंददायक
दिव्य अनुभूति न कि पाप पुण्य
कलियुग में करता ये प्रभु का काम
कहे संत राम से बड़ा राम का नाम
अपना स्वार्थ न थोपो इसपर
सदियों से है हमें गर्व जिसपर
राम का नाम न होगा कभी निर्भर
इसकी उसकी किसी मूढ़ मति पर
जीवन ध्येय आनंद का धाम
अपापविद्धम है राम का नाम
जय श्रीराम
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