गुरुवार, 12 अक्तूबर 2017

!! दीप !!


एक दीप-सा जलता जीवन ये
साँसों की हवा से लौ है चलती
जितनी उमर की तेल भरी उसने
उतनी देर ही बाती है जलती।

जलकर एकदिन बुझ जाना
यूँ तो हर दीप की नियति यही
पर कुछ दीप बुझकर न बुझते
जलते रहते हैं वे कहीं न कहीं।

जलकर भी रौशन करते हैं और
बुझकर भी राह दिखाते रहते हैं
जीवन जिनका प्रेरणा बन जाए
वे दीप कभी कहाँ बुझ पाते हैं।

खुद को ही रोशन करने भर में
बुझ जाए न एकदिन हम सब
रौशनी अपनी बाँटते रहे सदा
क्या पता तेल खत्म हो जाए कब?





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