श्वेत धवल वस्त्र
नेत्र सुंदर सजल
करुणमयी माते
विराजे पुष्प कमल।
वेद, वीणा शोभित कर
विद्या, बुद्धि की स्वामिनी
दिव्य आभा युक्त मुख
पद्मासना माँ हंसवाहिनी।
साहित्य, संगीत, कला
तुझसे ही भावना,संवेदना
ज्ञान से हो जाए प्रकाशित
जो भी करे तेरी उपासना।
अपनी कृपा दृष्टि की छाया
माँ सदा हमपे बनाए रखना
तेरे ऋण में दबे हैं फिर भी
तुझसे कैसे और ऋण ले ना?
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