मेरी वाणी को शब्द मिले औ
शब्दों में सत्य की शक्ति हो
अहंकार, गुमान न घेरे कभी
शब्दों का साथ जैसे भक्ति हो।
मौक़ा देख मौन न होऊँ कभी
बेवजह भी शब्द न बहे कहीं
मर्यादा की सीमा में बँधकर
छाँट सकूँ मैं ग़लत और सही।
शब्दों से सुंदर रंग भरूँ और
शब्दों से जग का शृंगार करूँ
शब्दों से ख़ुशियाँ बाँट सकूँ
और शब्दों से ही दुःख भी हरूँ।
बस सिर पे तेरा हाथ रहे और
मन में तेरे साथ का बोध भी हो
माँ के संग में भटके नहीं चाहे
बालक कितना अबोध भी हो।
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