अब उनको ज़रूरत है हमारी
हमारी ज़रूरतें तो हो गयी पूरी
उनके कुछ सपने,उनकी ख़्वाहिशें
रह ना जाए जाते-जाते अधूरी।
सुनने के सपने, सुनाने की ख़्वाहिश
इससे अधिक कुछ नहीं चाहिए उन्हें
गले में हार-सा डाल घुमाया था हमें
पैरों की बेड़ियाँ मान रहे आज जिन्हें।
कैसा लगता होगा उनको सोचकर
अपने दम पर जब वो जीया करते थे
अपनी ज़रूरत और अपनी मेहनत
अपने मन का सब किया करते थे।
आत्मनिर्भर से किसी पे निर्भर होना
आसान नहीं होता ऐसा होकर जीना
हर पल कुछ टूटता, मन भीतर घूटता
कभी-कभी अपमान भी होता पीना।
कंगाल समझ कोने में छोड़ रखा वो
दुआओं की दौलत से मालामाल हैं
घर के खजाने की क़दर नही तभी तो
सुख-चैन के लिए तरसते बेहाल हैं।
माँगने को मिले गर एक चीज़ मुझे
माँगू बुढ़ापा न आए कभी किसी को
आए तो अपने में उसे रमा लेना राम
झेलना पड़े अकेला न बुढ़ापा उसको।
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