नाम लिखी वो थालियाँ
अलग निशान से सजे कटोरे
चम्मच गुम हो जाते अक्सर
पता नहीं किस रूम में छोड़े।
ग्लासों की अदला-बदली तो
हरदिन की ही बात थी होती
उनके ग्लास नहीं गुमते थे
जो रोज़ उन्हें नहीं थी धोती।
थाली,कटोरे, चम्मच, ग्लास पता नहीं गए कहाँ
पर उन यादों का ज़ख़ीरा आज भी है दिल में यहाँ।
चम्पी हो या मेहंदी लगाना
या धोकर बाल धूप में सुखना
कभी अकेले कहाँ होते थे
कितना सुंदर था वो ज़माना।
संग में पढ़ना, संग में खाना
संग में हँसना, संग में रोना
संग-संग होता आना-जाना
संग में ग़लती, संग में बहाना।
बिछड़ गयी कलियाँ,खिली अलग-अलग उपवन में
पर यादों की ख़ुशबू महक रही अब भी सबके मन में।
हम जैसे सरसों की डालियाँ
धीरे-धीरे हुए पुराने जब फिर
हमें भी आती थी गालियाँ।
रोना-धोना फिर हुआ पुराना
रफ़ टफ हुई भोली-भालियाँ
सिसकियाँ हो गयी विदा अब
हर बात पे ठहाकें और तालियाँ।
जितनी जल्दी बदले हम उससे भी जल्दी गुज़रे दिन
तब कहाँ पता था एकदिन हम होंगे इन सबके बिन।
कोई देखती हाथ अच्छा तो
कोई गाना अच्छा थी गाती
कोई रूठ जाती पल भर में
कोई अच्छे से थी समझाती।
कोई पढ़ती सुबह में जगकर
किसी को रात में नींद न आती
कोई होती सहज संकोची तो
कोई घंटों तक थी बतियाती।
हँसी,ख़ुशी, लतीफ़ें, चुटकुले जीवन के संगीत थे सारे
झंकृत हो जाता मन अब भी याद कर पल वो प्यारे।
पहले दिन भी रोए वहाँ थे
अंतिम दिन भी जी भर रोए
इतने रिश्तें बन गए थे नए
बिना एक भी पुराना खोए।
मन की अलमारी के ताकों में
इन यादों को हमने संजोये
कभी ये बनती होठों की हँसी
तो कभी बन आँसू आँखें भिगोए।
कभी खट्टे,कभी मीठे, जैसे गुड़, इमली का स्वाद
दिन पुराने जो गुज़र गए फिर आए न उसके बाद।
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