ये आज़ाद हवा आज़ाद वतन
पाया है इनको बड़े जतन से
वीरों ने किए थे प्राण आहुत
आयी आज़ादी उसी हवन से।
राजगुरु,सुखदेव,भगतसिंह
क्या हुए वीर ये बलिदानी
इनके बिना अधूरी ही रहती
आज़ादी की अपनी कहानी।
देशप्रेम की अगन थी मन में
हौसला कि प्रज्वलित ज्वाल
दुश्मनों को दिखता प्रचंड रूप
लगते थे उनको साक्षात काल।
जो भाषा गोरे समझते थे उन्हें
उनकी भाषा में ही थे समझाते
गोली के बदले देते थे गोली
जहाँ माँगे वे वहाँ बम बरसाते।
भागे नहीं तो पकड़े गए,चले
फिर इंक़लाब का नारा लगाते
क़ैद में भी क्रांति कम नहीं हुई
वही से सबका उत्साह बढ़ाते।
झूल गए थे हँसते-हँसते
वे तीनों फाँसी के तख्ते
रंग दे मेरा बसंती चोला
कह रहे थे चलते-चलते।
निर्भीक चाल,निर्भीक नेत्र
नयी यात्रा पे चले हो जैसे
मुस्करा के मिले मौत से तो
ठिठक गयी मौत भी जैसे।
चढ़ गए थे ताज फूल आज
भारत माँ के सुंदर चमन से
धन्य हो रही थी धरती और
बरस रहा था गर्व गगन से।
ये आज़ाद हवा आज़ाद वतन
पाया है इनको बड़े जतन से
वीरों ने किए थे प्राण आहुत
आयी आज़ादी उसी हवन से।
पाया है इनको बड़े जतन से
वीरों ने किए थे प्राण आहुत
आयी आज़ादी उसी हवन से।
राजगुरु,सुखदेव,भगतसिंह
क्या हुए वीर ये बलिदानी
इनके बिना अधूरी ही रहती
आज़ादी की अपनी कहानी।
देशप्रेम की अगन थी मन में
हौसला कि प्रज्वलित ज्वाल
दुश्मनों को दिखता प्रचंड रूप
लगते थे उनको साक्षात काल।
जो भाषा गोरे समझते थे उन्हें
उनकी भाषा में ही थे समझाते
गोली के बदले देते थे गोली
जहाँ माँगे वे वहाँ बम बरसाते।
भागे नहीं तो पकड़े गए,चले
फिर इंक़लाब का नारा लगाते
क़ैद में भी क्रांति कम नहीं हुई
वही से सबका उत्साह बढ़ाते।
झूल गए थे हँसते-हँसते
वे तीनों फाँसी के तख्ते
रंग दे मेरा बसंती चोला
कह रहे थे चलते-चलते।
निर्भीक चाल,निर्भीक नेत्र
नयी यात्रा पे चले हो जैसे
मुस्करा के मिले मौत से तो
ठिठक गयी मौत भी जैसे।
चढ़ गए थे ताज फूल आज
भारत माँ के सुंदर चमन से
धन्य हो रही थी धरती और
बरस रहा था गर्व गगन से।
ये आज़ाद हवा आज़ाद वतन
पाया है इनको बड़े जतन से
वीरों ने किए थे प्राण आहुत
आयी आज़ादी उसी हवन से।
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