धरती नहीं बचाओगे तो
बोलो कहाँ फिर जाओगे
पेड़ों को यूँ काटोगे तुम
बोलो फल कहाँ पाओगे
कौन देगा धूप में छांव
कौन बारिश से बचाएगा
कहाँ बनाएँगे पंछी घोंसले
कौन हमें झूला झूलाएगा
धूप वर्षा सर्दी गर्मी
सब कुछ तो सहते ये पेड़
फूल भी लेते फल भी लेते
खाल भी इसकी देते उधेड़
ये हरे भरे लहलहाते पेड़
पालते हमें हैं माँ के जैसे
कुछ कुर्सी मेज़ की ख़ातिर
तुम उन्हें काट सकते हो कैसे
पेड़ों से हरियाली छीनी
फेंका है कूड़ा नदियों में
बिगड़ने में महीने साल लगे
सुधरती ग़लती सदियों में
न हवा साफ़ न पानी शुद्ध
सबको गंदा कर छोड़ा हमने
पर्यावरण को करके अशुद्ध
ख़ुद को ही है तोड़ा हमने
प्रदूषण का रोना है रोते
बाढ़ और सूखा को कोसते
ऐसी क्यों हो गयी प्रकृति
ये भला हम क्यों न सोचते
इतनी देर भी नहीं है हुई
चलो हम मिलकर पेड़ लगाए
अपनी धरती को अपने लिए
चलो सब मिल जुलकर बचाए
जो समझा है हमने उसे
चलो औरों को भी समझाए
और अधिक देरी न करना
देर करे वो बहुत पछताए
बोलो कहाँ फिर जाओगे
पेड़ों को यूँ काटोगे तुम
बोलो फल कहाँ पाओगे
कौन देगा धूप में छांव
कौन बारिश से बचाएगा
कहाँ बनाएँगे पंछी घोंसले
कौन हमें झूला झूलाएगा
धूप वर्षा सर्दी गर्मी
सब कुछ तो सहते ये पेड़
फूल भी लेते फल भी लेते
खाल भी इसकी देते उधेड़
ये हरे भरे लहलहाते पेड़
पालते हमें हैं माँ के जैसे
कुछ कुर्सी मेज़ की ख़ातिर
तुम उन्हें काट सकते हो कैसे
पेड़ों से हरियाली छीनी
फेंका है कूड़ा नदियों में
बिगड़ने में महीने साल लगे
सुधरती ग़लती सदियों में
न हवा साफ़ न पानी शुद्ध
सबको गंदा कर छोड़ा हमने
पर्यावरण को करके अशुद्ध
ख़ुद को ही है तोड़ा हमने
प्रदूषण का रोना है रोते
बाढ़ और सूखा को कोसते
ऐसी क्यों हो गयी प्रकृति
ये भला हम क्यों न सोचते
इतनी देर भी नहीं है हुई
चलो हम मिलकर पेड़ लगाए
अपनी धरती को अपने लिए
चलो सब मिल जुलकर बचाए
जो समझा है हमने उसे
चलो औरों को भी समझाए
और अधिक देरी न करना
देर करे वो बहुत पछताए
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